बेतुके शब्दों से
हमने रचे
अनगिनत गीत
काश!
सही से चुन पाते
ढाई अक्षर।
….
प्रेम में
कहाँ है अंतर
हुस्न और इश्क के बीच
ये भेद खुला उसी पर
जिसने!
लैला को मजनूँ समझा
मजनूँ को लैला जाना।
….
दुनिया भर के
तनावों में जकड़े हुए आदमी!
किसी दीवाने से लें
मुक्ति का सबक।
(रफत आलम)