…………………..
आओ थोडा प्यार कर लें
चूम लें तुम्हे
आंसुओं से धुली आँखों की
पाक नज़रों में बसी उदासी को
विरह में जलते ह्रदय से उठती भाप
से सूखे पपडाए होंठो को
चूम ले तुम्हारे तपते माथे को
आओ रख दें होंठ अपने
जलते तुम्हारे बदन पे
ख़त्म कर दें खुद को
तुम्हारी तपिश मिटाने में
आओ ना!
… …. …. …. …. ….
प्रणय
…………………………………………….
नीले नीम अँधेरे उजाले में
आती हो जब दबे पाँव सकुचाई
डरी सहमी हिरनी सी
देखता रह जाता हूँ
तुम्हारे आभूषण जडित रक्तिम बदन को …
जैसे लाल आग नीली लपटों में घिरी…
तुम्हारे बदन की लालिमा
जैसे धीरे धीरे
उतरती है मेरी आँखों में…
ये कैसा नशा है?
ये किसका नशा है?
उस मदिरा का जो तुमने पिलाई थी सुराही से
या उस का जो टपक रही है तुम्हारी मद-भरी आँखों से?
पिरा रहा है बदन कि जैसे टूटना चाहता हो
उफ़! ये तुम्हारी अंगड़ाई
आकार-प्रकार बदलता तुम्हारा जिस्म
जैसे चुनौती दे रहा हो कि आओ
समेट लो और भींच लो बाँहों में…
बढता ही जाता है शोर साँसों का
अपने आप मेरा बदन
ले लेता है तुम्हारे बदन को अपने आगोश में
तुम विरोध भी करती हो और
समाती भी जाती हो
मेरे आगोश में
मदहोश करती जाती है
तुम्हारे बदन की छुअन
दीवाना कर रही हैं तुम्हारी बाँहें
तुम्हारा उन्नत यौवन …
रेशमी मखमली बदन …
होश कहाँ अब तुम्हे भी …
मैं पढ़ सकता हूँ तुम्हारी आँख के खिंचते डोरे
पता कहाँ चला
कब मेरे होठों ने
बात शुरू कर दी तुम्हारे होठों से
सच मानों
तुम्हारा आज का रूप कुछ और ही है
तोड़ती जाती हो वो बंध जो खुल नहीं पाते
डरी सहमी शर्मीली हिरनी की खाल से
निकल कर सामने आ रही है
कामोन्मत्त सिंहनी…
समूचा मुझको पिघला के
समो लेना चाह रही मुझ को खुद में
हैरान हूँ मैं
कि कैसे पार कर दी तुमने
उन्मुक्तताओं की सीमाएं सारी
उफ़! ये तुम्हारा शीशे सा पिघलता जिस्म…
और ये उठता गिरता साँसों का ज्वार…
इस ज्वार में बह जाने को बेक़रार तुम और मैं…
हो जाते हैं एक …
एक तूफ़ान सा गुज़र जाता है जैसे
होश आता है तूफ़ान के बाद
जो अपने पीछे छोड़ जाता है…
एक डरी सकुचाई हिरनी
लेकिन तृप्त अहसासों से भरी
मैं आज गवाह हुआ हूँ
हमारे एक सबसे उन्मुक्त देह-संगम का
हिरनी -सिंघनी-हिरनी परिवर्तन का
अभिसार के बाद
………………………………………………………………..
अब जब सब बीत गया है तो मुझे अचरज होता है
न जाने क्या था जो मुझ पे छाया था….
नशा… खुमार…. उन्माद… जूनून…
गर्म अहसास तुम्हारे नर्म जिस्म का
अनावृत जिस्म
विवश करे दे रहा था मुझे
कि खूबसूरती के उदाहरणों को देखूं
या सुखद स्पर्शों का अहसास करूँ
मेरी दुविधाओं को बढ़ातीं
बंद हुयी कभी कभी खुल जाने वाली तुम्हारी आँखें
जो मेरी आँखों में झाँक कर मुझे आमंत्रित करतीं
और फिर मेरा जवाब पा
शर्मीले भावों से भर फिर से मुंद जातीं
सबसे बढ़कर मुझे मोह रहा था
मेरी ख़ुशी में सुख तलाशता
तुम्हारा समर्पण…
मेरी भावनाओं का ज्वालामुखी तो फटना ही था…
सच है मैंने कुछ किया नहीं था
सारे असर तुम्हारे थे
मैं तो जैसे जी गया था उन लम्हों में
जब तुम्हारे आगोश में सोया था
निश्चिन्त…
निर्द्वंद…
संतुष्ट…