वही कहानी मत दुहराओ
मेरा मन हो विकल न जाए
भावुकता की बात और है
प्रीत निभाना बहुत कठिन है
यौवन का उन्माद और है
जनम बिताना बहुत कठिन है
आँचल फिर तुम मत लहराओ
पागल मन है मचल न जाए
दर्पण जैसा था मन मेरा
जिसमें तुमने रूप संवारा
तुम्हे जिताने की खातिर में
जीती बाजी हरदम हारा
मेघ नयन में मत लहराओ
सारा सावन पिघल न जाए
तोड़ा तुमने ऐसे मन को
पुरवा जैसे तोड़े तन को
सोचो मौसम का क्या होगा
बादल यदि छोड़े सावन को
मन चंचल है मत ठहराओ
अमरित ही हो गरल न जाए
कदम कदम पर वंदन करके
यदि में तुमको जीत न पाया
कमी रही होगी कुछ मुझमे
जो तुमने संगीत न पाया
तान मगर अब मत गहराओ
जीवन हो फिर तरल न जाए
{कृष्ण बिहारी}