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मई 18, 2011

खुदा का पता

कोई कहता है खुदा बसता है कोई कहता है भगवान रहता है
बंदों का दावा है चंद मीटर गारे के घर में आसमान रहता है
अक्ल वालों होश का अंदाज़ किसी दीवाने से सीख कर आओ
आप खुद ही कहने लगोगे धरती पर तो बस इंसान रहता है

कोई हिसाब लिख रहा है सब को पता है यारो
क्या करें गुनाह से तो जनम का रिश्ता है यारो
मौत को याद करोगे तो आयेगा खुदा भी याद
वरना तो आदमी फितरत से ही बेवफा है यारो

क्यों भटक गयी मेरी बंदगी तुझी को पता
ये तेरी रज़ा को ही खबर, तुझे मंज़ूर क्या है
शैतान के हाथों में मेरी अक्ल को सौंपने वाले
मेरे गुनाहों को माफ कर, मेरा कसूर क्या है

वही बेबसी का मंज़र है जो के था
वही शैतान हमसफ़र है जो के था
वही गुनाह का इम्तिहान है जिंदगी
वही खाकी का मुकद्दर है जो के था

ये सही उसकी रजा के बिना पत्ता हिलता भी नहीं
लाख कोशिश कीजिये बंद दरवाजा खुलता भी नहीं
दीवानों ने देखा उसे तो दिखाने के काबिल न रहे
खुदी खोने से पहले खुदा का पता मिलता भी नहीं

भोर हुए ये मंदिरों के भजन हैं हमारी लोरियां
हम हैं अज़ान की आवाजें सुन कर सोने वाले
कहते हैं, कल्बों में रातों को स्वाह करके लोग
हम नहीं हैं पुराने संस्कारों का रोना रोने वाले

(रफत आलम)

खाकी  – आदमी

अप्रैल 19, 2011

जिंदगी तेरे रूप अनेक

मंदिर की पावन आरती
मस्जिद की अज़ान जिंदगी

मजदूर की सोयी हुई थकन
अमीर की अनिद्रा से परेशान जिंदगी

भूखे पेट की तमन्ना
रोटी के टुकड़े की मुस्कान जिंदगी

विधवा की जवानी
जलता हुआ मसान जिंदगी

बूढ़े की खांसी
पूरी होती दास्तान जिंदगी

संतुष्टि की चरम सीमा
बच्चे की मुस्कान जिंदगी

वेश्या की जवानी
मजबूरी का बयान जिंदगी

नारी का अनमोल आभूषण
सिन्दूर की शान जिंदगी

जिंदगी तू गुल भी तू ही खार
जिंदगी तू बिके तू ही खरीदार

तू लम्हा भी सदी भी है
कहकहों का समंदर कहीं

आँसुओं की नदी भी है
तू ही नेकी तू ही बदी भी है

तू ही शैतान की जननी
तू ही अवतार-पैगम्बर

जिंदगी तेरे रंग हज़ार
जिंदगी तेरे रूप बेशुमार

बावफा इतनी के साँसों में बसती है
बेवफा ऐसी के पल में मौत बनती है

(रफत आलम)