रिश्ते क्यूँ परिभाषित करें हम?
बोलो?
क्या कोई बिना नाम का रिश्ता नहीं हो सकता हमारे बीच?
कमिटमेंट के दस्तावेजों की कोई ज़रुरत है क्या?
क्या इतना नाकाफी है जानना
कि मैं पूरा पूरा तुम्हारा हुआ…
तुम में हुआ…
दिल से
रूह से
जिस्म से!
Life creates Art and Art reciprocates by refining the Life
हर कोई कला को समझना चाहता है। चिड़िया के गाये गीत को समझने की चेष्टा क्यों नहीं करते? पेंटिंग के मामले में लोगों को समझना होता है... पर क्यों?
वे लोग जो चित्रों की व्याख्या करना चाहते हैं सरासर गलती पर होते हैं।
![]() | प्रमोद कुमार प्रजापत… पर “इंकलाब जिंदाबाद”… |
![]() | Rohit Jaiswal पर तुम जो फ़ांसी चढ़ने से बच गये हो… |
![]() | Gobind sharma पर छिल रहे हैं मेरे सपनो के नर्म… |
![]() | Shiv Kumar पर शाकाहारी बनाम मांसाहारी भोजन :… |
![]() | Raj पर बुद्ध, महावीर, अहिंसा और मांसा… |
![]() | Raj पर बुद्ध, महावीर, अहिंसा और मांसा… |
![]() | Ravinder पर तुम्हारे लिए (हिमांशु जोशी) :… |
![]() | yashodadigvijay4 पर आयुर्वेदिक दोहे |
![]() | Pankaj Pathak पर तुम्हारे लिए (हिमांशु जोशी) :… |
![]() | Sagar पर “इंकलाब जिंदाबाद”… |
रिश्ते क्यूँ परिभाषित करें हम?
बोलो?
क्या कोई बिना नाम का रिश्ता नहीं हो सकता हमारे बीच?
कमिटमेंट के दस्तावेजों की कोई ज़रुरत है क्या?
क्या इतना नाकाफी है जानना
कि मैं पूरा पूरा तुम्हारा हुआ…
तुम में हुआ…
दिल से
रूह से
जिस्म से!
Posted on मई 15, 2014 at 3:54 अपराह्न in कविता, रचनाकार, रजनीश | RSS feed | प्रतिक्रिया | Trackback URL
सब को यही कहेंगे , कुछ नाम तो देना ही होगा