बहुत बड़ी सी भीड़ थी
दोनों पार्श्व में
मंत्रोच्चार करती, जय-जयकार करती!
कान्हा के सामने बैठे थे,
हम तीन
माँ, पिताजी और मैं|
आह्लाद नहीं था
कि कहीं हो रहा था
ईश्वर से मेरा संयोग
वरन,
मैं जार-जार रोया था
सिर्फ इस खुशी को जीकर
कि, आज इस क्षण में
मैं शांत होकर
बैठ सका हूँ
इन् दोनों के साथ
और कि,
कहीं तो ईश्वर मुझ पर मुस्कराया है|
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