वाक्य के सरल प्रवाह में बहकर
आँखों से ह्रदय में जाकर
फिर मन को हल्का कर देता है!
और-
कहीं कोई शब्द
वाक्य के सरल प्रवाह में बहकर
आँखों से ह्रदय में जाकर
फिर मन को भारी कर देता है!
शब्दों की सरलता
जो कभी मन को कर देती है हल्का
और कभी कर देती है भारी
मन-प्राण को कहीं छू-कर, सहला कर
कहीं किसी कृत्रिमता को पिघला देती है
और यह पिघला द्रव
कहीं आसुंओं के साथ धो देता है, मन को
और इसे कर देता है,
निर्मल और स्वच्छ!
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