सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
कहते हैं कुछ कवितायें कालजयी होती हैं क्योंकि स्वयं सत्य के अनुरोध पर प्रकृति स्वयं उन्हें जन्मा देती है और माध्यम उस भाव को जन्माने के लिए सुयोग्य एक कवि बन जाता है| दुष्यंत कुमार की इस कविता का उपयोग योग्य और षड्यंत्रकारी, दोनों किस्मों के लोगों ने बरसों से किया है| आपातकाल में और उसके बाद भी भिन्न किस्म के नेताओं ने भी इस कविता का उपयोग अपने हित में किया होगा, पर ऐसा ही पाया गया कि उनके द्वारा किया गया उपयोग दरअसल दुरुपयोग ही बन कर रह गया|
अब ‘आप‘ (आम आदमी पार्टी) के भारत के राजनीतिक पटल पर उदय के बाद और उसके बाद उनके तौर तरीकों से लग रहा है कि इस कविता को सही हाथ, सही मुख और सही वजूद मिल गये हैं|
‘आप‘ ने दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस और भाजपा ही नहीं बल्कि देश भर में बरसों से जमे जमाये विभिन्न राजनीतिक दलों के पैरों तले से सुखपूर्ण राजनीति का वैभवपूर्ण कालीन खींच लिया है| सबकी परेशानी एक ही है कि अगर ‘आप’ और इसकी किस्म की मूल्यों आधारित राजनीति चली तो यह शत-प्रतिशत तय है कि उनकी पुरानी किस्म की राजनीति , जो सड़ कर घाव बन चुकी है और देश को नासूर की तरह खाए जा रही है, या तो मृत्यु को प्राप्त होगी या उसे मजबूरन निर्वासन पर जाना होगा|
कांग्रेस और भाजपा जैसे दल, जो विगत में अनेकों बार अस्पष्ट तरीकों से बहुमत जुटा कर सरकारें बना चुके हैं, इस बार ‘आप‘ के पीछे पड़ गये हैं कि ‘आप‘ को दिल्ली में सरकार बनानी चाहिए जबकि ‘आप‘ के पास सरकार बना सकने लायक विधायक नहीं हैं| ‘आप’ की वजह से भाजपा मजबूर है कि बहुमत से केवल 4-5 सीटें दूर रहने के बावजूद भी वह सरकार नहीं बना सकती क्योंकि अगर उसने विगत की भांति अस्पष्ट तरीके अपनाए सरकार बनाने के लिए तो कुछ माह बाद होने वाले लोकसभा चुनावों में उसे जबरदस्त हानि उठानी पड़ सकती है| भाजपा ने उपराज्यपाल महोदय के बुलाने पर उन्हें सरकार बना पाने में अपनी असमर्थता जता दी और गेंद को ‘आप‘ के पाले में यह कह कर फेंक दिया कि ‘आप’ को अब सरकार बनानी चाहिए और भाजपा एक भले और जिम्मेदार विपक्ष की भांति उनके जनहित में किये सारे कार्यों का समर्थन करेगी| |
‘आप’ उप राज्यपाल महोदय से मिल पाती उसके एक दन पहले ही कांग्रेस ने अपनी तरफ से अति-राजनीतिक चतुराई दिखाते हुए ‘आप’ को बिना शर्त बाहरी समर्थन देने की चिट्ठी उप-राज्यपाल महोदय को भिजवा दी| कांग्रेस ने भाजपा की तर्ज पर ‘आप’ को अपने अनुभवी राजनीतिक कौशल से परास्त करने के लिए एक दुष्टता भरा दांव चला और उसे लगा होगा कि बस अब ‘आप’ फंस गई है और वह और भाजपा सरीखी पुरानी पार्टियां मिलकर ‘आप’ का दम निकाल देंगीं और राजनीति फिर से कीचड़ में खींच लेंगीं| पर वह भूल गई कि नया होने का मतलब मूर्ख होना नहीं होता और जो लोग मूल्यों पर आधारित राजनीति करने निकले हैं वे उनके घिसे पिटे दांवपेंचों के घेरे में आकर हार मानने वाले नहीं|
अरविन्द केजरीवाल ने ‘आप‘ की तरफ से सोनिया गांधी (कांग्रेस), और राजनाथ सिंह (भाजपा) महोदय को पत्र लिख कर कांग्रेस और भाजपा द्वारा बिछाए राजनीतिक चक्रव्यूह को छिन्न- भिन्न कर दिया है और उन्हें एक बार फिर से जनता के सामने बेनकाब कर दिया है|
देखें अरविन्द केजरीवाल द्वारा
(1) –सोनिया गांधी को लिखा पत्र
(2) राजनाथ सिंह को लिखा पत्र
(3) उपराज्यपाल महोदय को लिखा पत्र
कांग्रेस क्यों ‘आप‘ को बिना मांगे समर्थन दे रही है?
समर्थन तो तब दिया जाता है जब या तो विचारधारा समान हो या किन्ही मुद्दों पर समानता हो| ‘आप’ का तो जन्म ही कांग्रेस, भाजपा, क्षेत्रीय दलों और वामपंथियों द्वारा पोषित राजनीति का विरोध करने के लिए हुआ है|
‘आप’ ने सही ही कांग्रेस और भाजपा से आप के 17 संकल्पों को पढ़ने के बाद समर्थन पर विचार करने की बात की है| अगर ‘आप’ के मेनिफेस्टो और इन 17 संकल्पों को कांग्रेस और भाजपा समर्थन दे सकती है तभी उन्हें ‘आप’ को समर्थन देने जैसे बात करनी चाहिए वरना जनता उन्हें अग्माई लोकसभा चुनाव में दर्शा देगी कि समर्थन का दिखावा करना उन्हें राजनीतिक रूप से बहुत भारी पड़ा है| अब ये चालबाजी वाली राजनीति नहीं चल पायेगी भारत में|
मजेदार बात यह है कि कांग्रेस और भाजपा की एक समान विचार यह भी है कि दिल्ली में ‘आप’ को अल्पमत वाली सरकार बनाकर मजबूर करके उसे दिल्ली में ही सीमित करके बाद में उसे हर मोर्चे पर कठिनाइयों में डाल कर उसका भंडाफोड किया जाए| कैसा दुर्भाग्य देश का है कि अपने हितों पर कुठाराघात होता देख ऐसा भी राजनीतिक पार्टियां सोच सकते हैं| दिल्ली की जनता केएक बड़े तबके ने दिखा दिया है कि अहंकारपूर्ण राजनीति का अक्या हश्र हो सकता हैऔर अब देश भर में जागरूक मतदाता यही सब लोकसभा चुनाव में कर दिखायेंगे|
‘आप’ के पास पूर्ण बहुमत होता तो वह न केवल सरकार बनाती बल्कि अपने वादों को पूरा करके भी दिखाती और दिल्ली में व्यस्तता के बावजूद भी देश भर में अलख जगाती स्वच्छ राजनीति के उदय की|
स्वच्छ राजनीति को स्थापित करने का लक्ष्य तो हर हालत में पूरा होना ही है|
राजनीति सत्तासुख भोगने से हटकर पुनः सडकों पर पहुँच रही है और जिसे जनता के बीच उन जैसा बन कर उनके लिए कुछ करना है वही राजनीति में रह पायंगे बाकियों को अपनी मन पसंद जगह अब तक कमाए पैसों से ऐश्वर्यपूर्ण बंगले बनवाकर अवकाश प्राप्त जीवन जीने के बारे में गंभीरता से सोचना चाहिए|
क्योंकि जैसा कि दुष्यंत कुमार की प्रसिद्द कविता की दो अन्य पंक्तियाँ कहती हैं :-
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
आप व्यक्ति आधारित आंदोलन नहीं है, यह जनता के हृदयों में बरसों से देश के साथ किये गये राजनीतिक छल के प्रति आक्रोश से मचे मंथन से निकला अमृत है जो देश में यत्र-तत्र-सर्वत्र स्वच्छ राजनीति के अस्तित्व को स्थापित करेगा|
दुष्यंत कुमार की कविता की दो अन्य पंक्तियाँ हैं
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
अब सड़-गल चुकी सत्ता आधारित राजनीतिक व्यवस्था की बुनियाद ही गिरने का वक्त्त आ रहा है| बेहतर यही होगा कि विभिन्न दलों में भले लोग, जो दलाल किस्म के नेताओं के कर्मों के कारण घुटा हुआ महसूस करते थे, डूबते हुए जहाज़ों को छोड़ कर देश के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करें| और अगर यह संभव न हो तो अपने अपने दलों में रहकर सुधार की क्रान्ति का आह्वान करें और अपने अपने राजनीतिक दलों को, पारदर्शी और देश के प्रति जिम्मेदार और ईमानदारी को सम्मान देने वाला बनाएँ|
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