दिसम्बर 1, 2013
सुकून भी गया था एक बार मंदिर में,
पर
घडियालों के शोर से घबरा कर भाग आया|
सोचता हूँ बंद कमरे में गुमसुम बैठा,
ले बैठा मैं ये जिद,
ये क्या जिद मैं ले बैठा?
अपनों के आजमाने से आजिज आकर,
गैरों की तरफ कदम बढाए,
अब ये बैचेनी और बेबसी है मेरी कि
दोनों ही तरफ,
एक से लोग नजर आए हैं|

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दिसम्बर 1, 2013
ख्वाब 
न चेहरा होता है
न बदन कभी
अगर
बिखरेगा भी तो
कितना बिखरेगा?
मैं टूटा भी
सौ हिस्सों में गर
हर हिस्सा मेरा मुकम्मल ही रहेगा
मैं आइना नहीं
जो टूटा तो
अक्स बाँटूगा तेरा टुकड़ों में
मेरे हर हिस्से में
तब भी
तुम पूरा का पूरा ही समा सकोगी

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