शावक सा
बेबस,
भूल-भुलैया में खोये
बालक सा
भयभीत,
आस की डोर छोड़ चुके
चकोर सा
कातर,
मेरा मन!
तिरती- डूबती कश्ती का संघर्ष
निरुद्देश्यता का कालापन, चहुँ ओर
और,
इनसे अपनी उपजी घटाटोप विवशता
उनींदी आँखों में लाल डोरों की जद्दोजहद
किसलिए?
एक टुकड़ा बादल,
मुट्ठी में भर लेने की चाह
आह,
मेरे मन!