कुछ अपना
मुझ पे छोड़ देती हो…
कभी खनकती हंसी,
कभी भेद भरी मुस्कान
कभी आँखों की चमक,
कभी चूड़ी की खनक
कभी गुस्सा
कभी प्यार
कभी इनकार
कभी इकरार
कभी इसरार
कभी इजहार
पीछे छूटी चीज़ें उठाने में…
नया कुछ,
रोज़ छूट जाता है
मैं बस
तुम्हारे पीछे पीछे
उन्ही को समेटता चलता हूँ…
कभी आओ तो
एक रात भर को सही
ले लो अपनी अमानतें वापस
या रह जाओ खुद यहीं
जैसे तुम खुद छूट गयी हो
खुद के हाथों से…
(रजनीश)