अभी तुम्हारा ध्यान कहीं है
पीड़ा का अनुमान नहीं है
जिस दिन ठोकर लग जायेगी
उस दिन तुम फ़रियाद करोगे
तब तुम मुझको याद करोगे…
बालू की दीवार खड़ा कर
ताशों के तुम महल बना कर
अपने दिल की इस बस्ती को
जिस दिन तुम खुद बर्बाद करोगे
तब तुम मुझको याद करोगे…
मैं संयम का नहीं पुजारी
लंगडी नैतिकता लाचारी
मुझ बैरागी का दुनिया में
अनुरागी जब नाम धरोगे
तब तुम मुझको याद करोगे…
देखो तुम्हे बता देता हूँ
मैं सबको अपना लेता हूँ
सच कहता हूँ रुक न सकूंगा
जिस दिन लंबी सांस भरोगे
तब तुम मुझको याद करोगे…
सीता राम रटा डाला है
पंखों पर भी ताला जड़ा है
पिंजरे के पंछी को आखिर
एक दिन तो आज़ाद करोगे
तब तुम मुझको याद करोगे…
{कृष्ण बिहारी}
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