चाहे यह ज़िंदगी खंगालो
या तुम इसकी रूह निकालो
ठंडी आहें नहीं भरूँगा
सब कुछ चुपचाप सहूंगा
अब मैं तुमसे कुछ न कहूँगा…
मैंने कभी विरोध न माना
हर अनुरोध तुम्हारा माना
मान तुम्हारा रख पाऊं
मैं यह कोशिश दिन रात करूँगा
अब मैं तुमसे कुछ न कहूँगा…
दुख से मेरा वैर नहीं है
कोई रिश्ता गैर नहीं हैं
यदि वह मेरा साथ निभाए
तो मैं उसके साथ रहूंगा
अब मैं तुमसे कुछ न कहूँगा…
बहुत मौत से डरते होंगे
वे जीते-जी मरते होंगे
मैं उनमे से नहीं बंधु !
जो समझौतों की मार सहूंगा
अब मैं तुमसे कुछ न कहूँगा…
तुम भटको तो वापस आना
मन में कोई बात न लाना
दरवाजे पर जब पहुंचोगे
तुम्हे द्वार पर खड़ा मिलूंगा
तब मैं तुमसे कुछ न कहूँगा
अब मैं तुमसे कुछ न कहूँगा…
{कृष्ण बिहारी}
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