प्रीत जन्म है प्रीत मरण है प्रीत धरा है प्रीत गगन है
प्रीत छाँव है प्रीत तपन है प्रीत मधुर वह आलिंगन है
जिसको सबने किया नमन है!
प्रीत मधुरिमा प्रीत अरुणिमा प्रीत अमावस प्रीत पूर्णिमा
प्रीत ह्रदय में सूर्य-चन्द्र सी उदय – अस्त में यही लालिमा
प्रीत-रीत से अलग खड़ी- सी हर इक मन की ही दुल्हन है!
प्रीत रुदन है प्रीत गीत है प्रीत हार है प्रीत जीत है
कहीं मुखर है कहीं मौन है प्राणों का आधार प्रीत है
देह और मन के जुड़ने से बनी धरा पर यह वंदन है!
जड़-चेतन में यही चेतना प्रीत खुशी है प्रीत वंदना
प्रीत आदि है प्रीत अंत है कहीं ऊपरी कहीं साधना
सघन वृक्ष की तरह जगत में आवारों का प्रीत भवन है!
प्रीत गंध है प्रीत डगर है प्रीत गाँव है प्रीत नगर है
यह गोरी है यह चूनर है कहीं सिंधु है कहीं लहर है
प्रीत कहीं पर धुल हो गयी कहीं माथे पर यह चंदन है!
कालिदास में यह शकुंतला मीरा में यह कहीं किशन है
ताजमहल की यही नायिका शाहजहां का एक सपन है
माने कोई बात अगर तो प्रीत ह्रदय का ही दरपन है!
प्रीत कहीं सरनाम हुयी है प्रीत कहीं बदनाम हुयी है
प्रीत कहीं गुमनाम हुयी है प्रीत कहीं नीलाम हुयी है
लेकिन इसके बावजूद भी प्रीत जगत का अंतर्मन है!
जाने कितनी भरी पोथियाँ बात प्रीत की करते-करते
जाने कितने युग बीते हैं बात प्रीत की करते-करते
मेरे तो मौलिक चिंतन में सरल-कठिन-सा यह दर्शन है!
प्रीत राधिका प्रीत भवानी घनानन्द की आम- कहानी
प्रीत शूल है प्रीत सुमन है प्रीत चैन है प्रीत चुभन है
प्रीत तपस्या प्रीत यातना यह जीवन की सरस साधना
पिघल गए पाषण जिसे सुन आहत मन का वह क्रंदन है!
{कृष्ण बिहारी}