मुझमें पत्थर पड़े हैं क्या
लोग हीरे के बने हैं क्या
अँधे, बहरे और बस चुप
ये हादसों के बचे हैं क्या
फुटपाथ पर बड़ी है भीड़
कहीं झोपड़े जले हैं क्या
आपको भाती है जिंदगी
हवा महल में बसे हैं क्या
नमक क्यों लाए हो यार
घाव अब भी हरे हैं क्या
जिंदगी-मौत, धुंआ–खुशबु
ये किसी के सगे हैं क्या
माहौल काला सा क्यों है
बस्ती में पेड़ कटे हैं क्या
हाथों के पत्थर किसलिए
शहर में शीशे बचे हैं क्या
भला लगने की बात जुदा
लोग सच में भले हैं क्या
इन्साफ का पता पूछते हैं
आप शहर में नए हैं क्या
मूँछ झुकी कैसे है आलम
बेटी के बाप बने हैं क्या
(रफत आलम)