मैं गंगा से घृणा करता हूँ
वहाँ मैंने अपनी पत्नी को अग्नि में समर्पित किया
वहाँ हमने अपने नवजात बच्चे को
जल समाधि में अर्पित किया
वहाँ मैंने दोस्तों-दुश्मनों का दाह किया
मैं गंगा में स्नान नहीं करता
मैं गंगा से घृणा करता हूँ
गंगा में मौत की थपक है
मैं गंगातट नहीं जाता
मैं छिप-छिप कर रोता हूँ
आधी रात…
गंगा किनारे…
(दूधनाथ सिंह)