भ्रष्टाचार की फैक्टरी में
लोकहितकारी योजनाओं का लहू
निचोड़ा जाकर
सोने में बदला जा रहा है
अनगिनत बैंक लोकरों संग्रणग्रहों में
दफन हो चुके हैं सपने जो
विकास की हकीकत बनने थे
प्रजातंत्र के चारों स्तंभ
चोर उच्चके लफंगों के कब्जे में हैं
विवेक दुबका पडा है
बोले तो जान की खैर नहीं
तुमने देखा नहीं क्या
सच के उपासकों का अंजाम
कल ही एक जिंदा जलाया गया है
बाकी की तलाश में हैं गोलियाँ
आज के सफ़ेदपोश आतकंकारी
करोड़ों उम्मीदों के ये कातिल
बदतर हैं विदेशी दुश्मनों से
जिनके बम सौ पचास जानें लेते हैं
जो भी इन्ही की गफलत से
फौजी ताबूत और गोलीरोधी जाकेट तक
निगल खाए बेईमानों ने
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
बेलगाम हैं ऊँगलीमालों के काले घोड़े
अब तथागत कहाँ?
कौन गाँधी?
फिर भी अचीर इस अंधकार में
रौशनी की दीर्घ किरण
अन्ना हजारे
बुझने से पहले
सुनहरा सूरज तुम्हे सौंपने को है आतुर
ए! छले गए, लूटे गए, बहलाए गए
शोषितो-शापितो-मुफलिसो
खास तौर से नौजवानो
बहुत कर चुके हो आत्महत्याये
अब वक्त शहादत का आया है
सच का कफ़न बाँध कर चल पडो
अन्ना हजारे के साथ
क्या पता
बेईमानों के विरुद्ध जंग
इस बार हम जीत ही जाएँ?
(रफत आलम)
Pic. courtesy : Hindustantimes
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