’सी.डी.’ जैसी जिंदगी
निश्चित अवधि तक
दुःख–सुख भरे गीत गाती है
कई बार
’स्क्रेच’ लग कर
बीच में ही रुक जाती है।
* * *
’टायर’ सा जीवन
भाग रहा है
गतिमय
दिन-रात के सफर में
अचानक ’पंक्चर’ से
फुस्स भी हो जाता है।
* * *
’कम्प्यूटर’ सा जीवन
संजोता है
सब हिसाब-किताब
’वायरस’ अटैक से
’करप्ट’ होकर
’ब्लैंक’ हो जाता है
कई बार।
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रेलगाड़ी सी जिंदगी
स्टेशन दर स्टेशन गुज़रती
मंजिल की तरफ
कई बार
हादसे की ’चेन’ से
अचानक रुक जाती है।
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जिंदगी!
मौसम की आज़माइश में
’हीटर’ की तरह तप्त
’कूलर’ जैसी शीतल
मौसमों के इम्तिहान में मग्न है
अचानक ’लाइट’ जाने पर
फुक्क भी हो जाती है।
(रफत आलम)