तबादला

चार दिन गायब रहने के बाद हरेंद्र हॉस्टल वापस आया तो बहुत खुश था। अपने कमरे में जाकर सामान रखने के बाद बाहर आया तो उसके हाथों में मिठाई के डिब्बे थे। मैस में काम करने वाले लड़कों को उसने खाना खाते अपने सभी साथियों को मिठाई देने के लिये कहा और अपने ग्रुप के साथ  बैठ गया।

उसने बताया कि वह अपने घर चला गया था। सूचना आयी थी।

साथियों ने मजाक किया कि शादी वगैरह तो निश्चित नहीं कर दी घर वालों ने।

अरे नहीं।

हरेंद्र आठ भाई-बहनों में सबसे बड़ा था। कुछ हाथ तंग करके ही उसका माहभर का खर्च निकल पाता था। उसके पिता को आशा थी कि साल-डेढ़ साल में इंजीनियरिंग पूरी करके उसे नौकरी मिल जायेगी तो घर की आर्थिक हालत बेहतर हो जायेगी। साथियों के लिये यह थोड़ा हैरत का विषय था कि वह पूरे हॉस्टल को मिठाई खिलाये। उन्होने अपनी शंका का समाधान चाहा।

तो फिर यह सारे हॉस्टल को मिठाई क्यों बाँटी जा रही है?

अरे यार तुम लोगों से क्या छिपाना। दरअसल पापा का तबादला हो गया है। दस साल से सालों ने ऐसी जगह डाला हुआ था… जहाँ सैलेरी के अलावा कुछ भी कमाई नहीं थी। अब जाकर ऐसी पोस्टिंग मिली है जहाँ पैसा ही पैसा है। पिछले दस साल बहुत परेशानी में बीते हैं हमारे घर के। अब हालात ठीक होंगे। पापा बहुत खुश थे। तबादले के लिये बहुत भागदौड़ की है इन दस सालों में। अब जाकर काम हो पाया है। ऊपर थोड़ा पैसा खिलाना पड़ा पर यह सब तो कुछ ही माह में पूरा हो जायेगा। यह सेक्शन डिपार्टमेंट के सबसे कमाऊ सेक्शंस में आता है। ऐसा मलाईदार तबादला मिला है… मजा आ गया यारों। वारे न्यारे हो जायेंगे अब। सब कसर पूरी हो जायेगी।

हरेंद्र का चेहरा खुशी से लबरेज़ था।

 

…[राकेश]

10 टिप्पणियां to “तबादला”

  1. अब देकर नई पोस्टिंग पाई है तो उसकी भरपाई तो करेगा ही। भ्रष्‍टाचार अब शिष्‍टाचार बन गया है। इमानदारी की परिभाषा अब यही रह गई है कि जिसे मौका नहीं मिला वह इमानदार।

  2. लगा कि यह कहानी सुनता ही रहता हूं.

  3. अतुल जी,
    आपने सही लिखा, आजकल भ्रष्टाचार इस कदर फैला दिया गया है कि ऐसा ही लगने लगा है कि जिसे मौका नहीं मिला वही ईमानदारी की बात कर सकता है वरना बहुमत मौका मिलते ही भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है।
    देकर पोस्टिंग पाने में ’देने’ के लिये लगातार किये गये प्रयास बहुत महत्वपूर्ण हैं। पोस्ट तो महोदय के पास थी ही परंतु मलाईदार जगह चाहिये थी अतः दस साल प्रयासरत रहे ऐसी जगह जाने के लिये। असल बात है कि उनके बच्चे तो बचपन से ही ट्रेंड हो गये भ्रष्टाचार के सबक सीखने में। इंजीनियर बेटे ने पहली ही नौकरी में जलवे दिखाये होंगे। और परिवार ही इन सब सिलसिलों को शुरु करता है। माँ-बाप ही ईमानदार नहीं हैं तो नई नस्ल तो घुट्टी में भ्रष्टाचार की डोज़ पाती है।

  4. राहुल जी,
    धन्यवाद।

    हर गली मोहल्ले में दिखायी-सुनायी देने वाली बात है। रोज़मर्रा की बात है।

  5. अच्छी बोध कथा!
    ब्लॉग का नाम और पोस्टें जो नकारात्मकता दिखाती हैं, वह आजके सिनिकल माहौल के अनुरूप ही है।
    यही आशा कर सकते हैं कि सिनिकल/स्कैमिस्ट/घोटालायुक्त/भ्रष्ट माहौल ज्यादा न चले! 🙂

  6. वाह! वाह राकेश जी कैसासुंदर करार करार प्रहार किया है आज की व्यवस्था पर .लगभग ९०%देश में बेईमानी का राज है बचे लोग बहुत परेशान हैं .उन्हें कभी मलाईदार पद नहीं मिलता .राजा का बाजा बंद भी नहीं हुआ अब उससे भी बड़ा भोपूं अरबों के डकारने का बज उठा है. हाल ये है किसी भी नोकरी के लिए लाखों झूस देनी पद रही है तो नीव ही बेईमानी की रखी हो तो मकान हराम का बनेगा ही .

  7. ज्ञानदत्त जी,
    धन्यवाद! कीचड़ तो रहेगा, हर युग में रहा है, ईमानदारी की शर्त इतनी ही रही है कि कीचड़ को कीचड़ ही देखा, समझा और कहा जाये, उसे गंगा जल मानकर सर्वग्राही न माना जाये न मनवाया जाये।

  8. धन्यवाद रफत जी,

    सही लिखा आपने, घूस लेने देने का ऐसा कुचक्र चल गया है कि मुर्गी और अंडे के मामले की तरह यही सिद्ध होना मुश्किल है कि घूस लेना पहले शुरु हुआ होगा या देना?

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