हे अभिनेता!
तुम अभिनय को
अपने द्वारा निभाए गये पात्र को
वास्तविक न मानने लगना|तब अभिनय भी एक ऐसा नशा हो जाएगा
जो जीवन के वास्तविक स्वरूप को हटाकर
कहीं और व्यस्त कर देता है दिमाग को
और कुछ समय के लिए व्यक्ति
जो वह नहीं है
वही होने का भ्रम पाल लेता है|जैसे कुछ लोग वास्तविक जीवन में साधु होने का
अभिनय करने लगते हैं
और अपने को वास्तव में साधु समझने लगते हैं
पर जीवन की वास्तविक रंगभूमि से पलायन करने वाले
ऐसे लोग साधुता का केवल चोगा ही पहन सकते हैं
और सन्यस्त होने का अभिनय ही कर सकते हैं
जैसे अभिनेता वहाँ मंच पर अभिनय करते हैं
ये यहाँ वास्तविक जीवन में छलिया बने रहते हैं
पर छलते तो वे खुद को ही हैं
यदि वास्तव में संतत्व उन्हे मिल गया होता तो
क्या यूँ अपनी जिम्मेदारियों से भागते?
गांजे से मिली शांति को असली मानते?
संसार की नश्वर्ता के भ्रम में सब कुछ भुलाए रखते?हे अभिनेता!
तुम भी अपने को किसी भुलावे में न डाल लेना
अभिनय किसी भी पात्र का करो पर
अपने वास्तविक स्वरूप को ना भूल जाना!
… [ राकेश ]
जून 4, 2010