कारीगरों के हिस्से में इनाम आ गये
हम औजारों का क्या था काम आ गए
वो खेल तो शाहों की शह-मात का था
मजबूर प्यादे बेगार में काम आ गए
प्रजा को बेच रहे हैं ज़मीर-फरोश शाह
ये कैसा दौर है कैसे निज़ाम आ गए
सियाहकारों के गुनाहों के चश्मदीद थे
मुल्जिमों की फ़ेहरिस्त में नाम आ गए
साकी तेरे मयकदे का खुदा ही हाफिज
कमज़र्फ रिन्दों के हाथों जाम आ गए
बस्तियों में तो पीने का पानी भी नहीं
नेता के वास्ते छलकते जाम आ गए
अंधेरनगरी में अवाम ने चुने थे शाह
मालायें ले के चाटुकार तमाम आ गए
हम अपना पता भूले हुए थे ए आलम
गनीमत जानिये घर सरे शाम आ गए
(रफत आलम)
ज़मीर्फारोश -अंतरात्मा विक्रेता,
निजाम -सत्ता,
सियाहकारों – काले कार्य करने वाले (बेईमान ),
फेहरिस्त -सूची,
चश्मदीद – प्रत्यक्षदर्शी,
रिंद – शराबी